परिणाम
सोचा अक्सर वक्त समझकर, पर वक्त से ही भागा है। लड़ने की जिज्ञासा तुझमें, उसी युद्ध से हारा है। अक्षर बैठे सोच लेते, क्या इससे कुछ भी सिखा है। अज्ञात होकर आगे बढ़ता, अन्त में व्याकुल निष्ठा है।
डरकर अभी तो कुछ ना होगा, मेहनत करके ही ज्ञात होगा। जो खुद को संपूर्ण भूल गया हूँ, खुद का खुद से परिचय होगा।
सोच-सोच में डूब गया, जाने कहाँ ये फिसल गया। ये रास्ते तो इसने खुदने बनाए, पर ये अज्ञात ज्ञानी, मार्ग भूल गया।
बदले में तो कुछ है पाया, खोया जो वक्त बर्बाद है। तेरी ख्वाइश है तुझ पर भरी, खामोशी भरी किताब है। जुड़ी है खुद से, एक अलग ही दुनिया, सत्य का अपमान है। स्वयं ही कारण, स्वयं ही उत्तर। ये सोच, कर्म, ख्वाइश, भ्रम, सब कुछ स्वयं का ही परिणाम है। जो हुआ, उसे बदल ना सकता, भूतकाल शक्तिमान है। समझना तुझको खुद से ही है, जो जीते, वही विशाल है।
अंतर्मन के ध्यान से, खुदका दीप जलाएगा। खोज कर खुदको, आत्मशक्ति से, निश्चित मार्ग पर जाएगा।
वार्तालाप नहीं, योग्यता खुदकी दिखाएगा। दर्द देना है, हर रोज़ खुदको, तभी युद्ध का वीर कहलाएगा।
~ Relax